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मै मूरख

पैदा कर मोहे माँ मेरी ने दुनियाँ देयी दिखाई,

मैं मूरख मुझको माँ की न ममता समझि में आई,

दूर सफर में चलत मोहे जब कछु न दिया दिखाई,

तब बचपन की एक शाम अनोखी आँखन में भर आई,

हाथ नहीं थे भूख मेरी पर माँ ने देयी मिटाई,

याद मोहे भी एक दिन माँ को मैने थी रोटी खिलाई।।

राही (अंजाना)

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