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मोबाइल मोह

कुछ दिल,कुछ धड़कन बन गया है,ना देखू एक पल तो मन बेचैन हो जाता है।
कैसे एक मशीन जीवन का सार बन गई है,जैसे कोई बालक मां से बंध जाता है।।
ये मशीन ही मेरा मोबाइल है,जो मुझको जोड़े रखता है दूर बैठे मेरे परिवार से,मेरे समाज से।
कभी अकेलापन इसके साथ महसूस नहीं हो पाता है,और शायद अब मन भी इसके बिना एक पल भी नहीं रह पाता है।।
जरूरत खत्म हो गई है घड़ी की शायद,अब समय भी मोबाइल बतलाता है ।
जरूरत खत्म हो गई है अब शायद संगणक की भी,अरे भाई अब जोड़ घटा गुणा भाग भी अब मोबाइल करवाता है ।।
एक जमाने से नहीं गई हूं में अपने मायके,नहीं देखा मेरी छह महीने की बच्ची को मेरे मां पापा ने,
अरे वाह, ये मेरा मोबाइल ही तो अपने नाना नानी से उनकी धेवती को वीडियो कॉलिंग से दिखलाता है।।
आज पतिदेव को बंगलौर आफिस जाना है,
कैसे पालन होगी सोशल डिस्टेंसिंग सार्वजनिक जगहों पर।
सोच रही हूं घर बैठे मोबाइल से ही टिकट और ओला बुक करवाना है।।
तभी भूख से बिलखती मेरी बेटी रोती है,एक मिनट दो मिनट रुक बाबू,
पहले मोबाइल एक रिप्लाई दे दूं,तब तुझको दूध पिलाती हूं।
एक टक देखता मेरा बच्चा मुझको ,क्या नौ महीने पेट में रखने के बाद भी मेरी भूख ,मां को मोबाइल से नहीं प्यारी है।
शायद कुछ खास तो होगा मोबाइल में,तभी तो मोबाइल ,छह महीने के बच्चे की भूख पर भी भारी है ।।
आफिस से घर आए पिता ,शायद किसी से बात कर रहे है,बाबू तुझको गोद में अभी उठाता हूं,मेरे दोस्त मुझसे बात कर रहे है।।
कैसे एक मोबाइल जीवन का सार बन जाता है,जैसे कोई बालक ताउम्र अपनी मां से बंध जाता है। ।
भावना सरोज , मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश

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