जिंदगी का पल पल
बीत जाता है,
हम देखते रह जाते हैं,
सुबह से शाम तक
शाम से सुबह तक
मिलन से विरह तक,
बीते पलों की जिरह तक
नहीं कर पाते हैं,
कल से आशा लगाये
रह जाते हैं।
मगर विश्वास नहीं
कर पाते हैं।
कल भी बीतेगा,
बीतता जायेगा,
बीतता रहा है।
कभी नादान थे
अंजान थे,
वो भी बीत गया।
आज भी बीतेगा
कल भी।
मकसद आखिर क्या है
बीतने का।
बीतना ही है तो
फिर मकसद क्या है
होने का।
यह रहस्य
रहस्य ही रह जाता है।
वक्त बीतता ही जाता है,
बीत जाता है।