रात अपना ही rajesh arman 8 years ago रात अपना ही कोई किस्सा बन जाता हूँ दिन के उजाले में कोई हिस्सा बन जाता हूँ निकल तो जाता हूँ बाज़ारों में कहीं शाम के होते ही न चलने वाला कोई सिक्का बन जाता हूँ राजेश’अरमान’