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“रात-दिन रतजगे किये हैं हमने इश्क में”

रात-दिन रतजगे
किये हैं हमने इश्क में
हम तो अपने यार की
धूनी रमते हैं इश्क में….
लौटकर वो आएगा
ये सोंचकर अभी खड़े
जहाँ वो छोंड़कर गया
वहाँ रुके हैं इश्क में….
कभी गिरे तो कभी संभल गये
आईं कितनी भी रुकावटें
मगर नहीं रुके हैं इश्क में….
हीर हो या रांझा हो
मीरा हो या राधा हो
ना जाने कितने मजनू
मर मिटे हैं इश्क में…

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