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राम

पृथ्वी के कण-कण में देखो एक राम समाये थे,
मन के पावन मंदिर में सबने एक राम बसाये थे,

छोड़ राज पाठ घर से जब जंगल में वो आये थे,
चौदह वर्ष संघर्षों का जीवन एक राम बिताये थे,

सीताजी से मिलने हनुमत लंका में घुस आये थे,
छोटी सी मुद्रिका में माता को एक राम दिखाए थे,

पुल पर कदम बढ़ाने में सब असक्षम हो आये थे,
राम नाम लिख पत्थर गंगा में एक राम बहाये थे,

साधारण दिखते थे पर असाधारण कहलाये थे,
राम ने स्वयं ही समुद्र किनारे एक राम बनाये थे,

अधर्म मिटाने धर्म पथ वो मानव रूप में आये थे,
राम राज़ जब लाये स्वयं वो एक राम मिटाये थे।।

राही अंजाना

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