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रौंद कर निकल भी जाऊ आगे सबसे

रौंद कर निकल भी जाऊ आगे सबसे,
मगर अपनों के ऊपर चलने का हुनर कहाँ से लाऊँ,
बनाने को तो बनाए रहूँ रिश्ते सभी,
मगर जो रिश्तों को जोड़े रक्खे वो डोर कहाँ से लाऊ,
कह दूँ हर बात ज़ुबाँ से सुन लेते है सभी,
मगर जो खामोश जज़्बात भी पढ़ ले वो नज़र कहाँ से लाऊ,
जख्म बन चुके हैं नासूर मेरे,
मगर जो आराम दे जाए वो दवा कहाँ से लाऊँ।
~ राही (अंजाना)

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