लगता था जिंदगी बहुत बेमानी हो गई
पहले-पहल ऐसे लगा कुछ छूट रहा
यह जग सारा टूट रहा
फिर कुछ दिन बीते
मन शांत होने लगा
छूटने का गम नहीं कुछ पाने की चाह हुई
यह कुछ पाना कुछ और ना था
खुद को ही जानने की चाह थी
खुद में ही खोने की राह थी
पहचाना स्वयं को,अब और क्या है बाकी
जिंदगी अब बेमानी नही
शान्त सी लगने लगी
अब भीतर-बाहर कोई शोर नहीं
मौन नदिया सी बहने लगी।