Site icon Saavan

वक्त का मारा हुआ

हुकुमत की जंग में रिश्ते, नाते , सच्चाई, जुबाँ की कीमत कुछ भी नहीं होती । सिर्फ गद्दी हीं महत्त्वपूर्ण है। सिर्फ ताकत हीं काबिले गौर होती है। बादशाहत बहुत बड़ी कीमत की मांग करती है। जो अपने रिश्तों को कुर्बान करना जानता है , वो ही पूरी दुनिया पे हुकूमत कर पाता है । औरंगजेब, सिकन्दर, अशोक इत्यादि इसके अनेक उदाहरणों में से एक है । ये महज इत्तिफाक नहीं है कि पूरी दुनिया का मालिक अक्सर अकेला हीं होता है।

वेवक्त बेसहारा हुआ ना सिंहासन का उतारा हुआ,
बड़ी मुश्किल से है उठता विश्वास का हारा हुआ।

तुम दुश्मनों की फौज पे अड़े रहे थे ठीक हीं,
घर भी तो देख लेते क्या क्या था बिगाड़ा हुआ।

थी रोशनी से ईश्क तो जुगनू से रखते वास्ता,
कोई अपना भी तेरा क्या जो दूर का सितारा हुआ।

नजरें मिलानी खुद से आसां नहीं थी वाइज,
हँसे भी कोई कैसे फटकार का लताड़ा हुआ?

ये ओहदा ये शोहरतें कुछ काम भी ना आई ,
नसीब का था मालिक नजरों का उतारा हुआ।

थे कुर्बान रिश्ते नाते हुकूमतों की जंग में,
बादशाह क्या था आखिर तख्त का बेचारा हुआ।

जिक्र-ए-आसमाँ है ठीक पर इसकी भी फिक्र रहे,
टिकता नहीं है कोई धरती का उखाड़ा हुआ।

जश्न भी मनाए कैसे आखिर वो किस बात का,
था सिकन्दर-ए-आजम भी वक्त का दुत्कारा हुआ।

अजय अमिताभ सुमन

Exit mobile version