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वह सांवली सी लड़की

गिट्टू सी लड़की
सांवली सी सूरत।
लिए घूमती थी
ढेर बच्चों की पंगत।
कुछ लिए ढपली,
कुछ गाते राग।
मुंह और हाथों से
बजाते थे वो साज।
भूखा पेट रोटी की तड़प
आवाज थी उनकी
दमदार कड़क।
गाते ना थकते
वह गुदड़ी के लाल।
सोचना था काम
कैसे होगा?
दो वक्त की रोटी का इंतजाम।
पटरी पर सोते ये बचपन ये इंसान
काश इनका भी जीवन कुछ होता आसान।
निमिषा सिंघल

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