Site icon Saavan

विचारों को जब

विचारों को जब बाँध रही थी,

अरमानों के साँचे ढाल रही थी,

खिन्न हुई, उद्वगिन हुई  जब,

खुद को मैं आँक रही थी ।
विचारों को खोल  चली जब,

निरन्तर  प्रवाह से जोड़ चली जब,

आशा-निराशा  छोड़ चली जब,

जीवन संग आन्नदित हूँ।
कर्तव्यो की जो होली है,

रंग-बिरंगी  आँख मिचोली है,

संग मैं हूँ, जीवन की जो भी बोली है ।।

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/10/15/


 

Exit mobile version