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विजयादशमी हम मनाते है

विजयादशमी हम मनाते है पर अपने अंदर के रावण को कहाँ जलाते है ?
कटाक्ष कर रही है भगवान श्री राम की सच्चाई और निष्ठा ,रावण जैसे दुराचारी के क्रोध,कपट,कटुता,कलह,चुगली ,अत्याचार |
दगा,द्वेष,अन्याय,छल रावण का बना परिवार ,
आज कहाँ मिलते है माता सीता जैसे निश्छल विचार |
वर्तमान का दशानन,यानी दुराचार भ्रष्टाचार ,
आओ आज दशहरा पर करे,हम इसका संहार |
कागज के रावण मत फूँको, जिंदा रावण बहुत पड़े है,
अहंकार,आज इंसान की इंसानियत से भी बड़े है |
आज झूठ भी बड़े गर्व से अपने हुकूमत पे अड़े है|
आज भी सीता रावण की नजरो मे उसकी जागीर बनी है,
सीता की पवित्रता की ना जाने कितनी तस्वीर जली है|
विजयादशमी हम मनाते है पर अपने अंदर के रावण को कहाँ जलाते है ||

धरतीमाता आज भी रो पड़ी है ,अपनी सीता की ये हालत देखकर,
पर विधाता की कलम भी ना डगमगाई, सीता की ऐसी तकदीर लिखकर |
आज कहाँ राम सीता को बचाते है ,
आज तो राम ही सीता की पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाते है |
मृगतृष्णा में ना जाने कितने बहके पड़े है,
राम के जैसे सद् विचारो से मीलो दूर खड़े है |
आज ना राम जैसा पुत्र जन्मा है,ना राजा दशरथ जैसा पिता |
ना आज रावण की नजरें रहने देती गीता जैसी पवित्र सीता |
विजयादशमी आज भी हम मनाते है,पर अपने अंदर के रावण को कहाँ जलाते है ||

नवनीता कुमारी (डेंटिस्ट)
ग्राम+पोस्ट -चुहड़ी
शहर-बेतिया
जिला-पश्चिम चंपारण
राज्य-बिहार
थाना-चनपटिया
पिन -कोड-845450
मोबाईल नंबर -9304421634

प्रमाणपत्र

प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न कविता जिसका शीर्षक “विजयादशमी हम मनाते है”है मौलिक वअप्रकाशित है तथा इसे “saavan Redefining poetry “2020 मे सम्मिलित करने हेतु प्रेषित किया जा रहा है और मुझे सावन कविता प्रतियोगिता 2020 पिक्चर पर कविता ) की तमाम शर्ते मान्य है |

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