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विरासत

दादा का बजता ग्रामोफोन ,कानों में गूंजा करता है ।
वह आज भी घूमा करता है आंखों के रोशन दानों में, संगीत की धुन सुनते सुनते ,
कब समा गया. .. संगीत मधुर… इन कानों में ,
ना पता चला।
गीतों का मधुर कैसेट प्लेयर ,
जो रोज बजाया करते थे ,
पापा गुनगुनाया करते थे,
परेशानियों में कैसे हंसना है ,कब सीख गए?
ना पता चला।
कलात्मकता व्यवहार में थी,
रोजाना के रोजगार में थी,
कब उतर गई व्यक्तित्व में ,
ना पता चला
दादा दादी का मधुर लाड,
थोड़ा सा गुस्सा अधिक प्यार,
कब आत्मसात किया ना पता चला ।
खूबसूरत सी विरासत ,
जो बन गई थी पहचान मेरी, ना पता चला।
निमिषा सिंघल

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