Site icon Saavan

वृद्ध की अभिलाषा

एक-एक करके
चले गए, जो बने थे मेरे सब अपने
क्रम-क्रम से बिखर गये
वो सुन्दर रचित मेरे सपने
अब तो तन्हा हूँ, तन्हाई है
बाकी कुछ अब शेष नहीं
सब मिट गया, इक अधंड में
बाकी कुछ अवशेष नहीं
मात्र जिन्दा हूँ, मरा नहीं
मरना अभी शेष है बाकी
शरीर उठाये फिरता हूँ
जिसमें हड्ड है, लहू नहीं है बाकी।
यादों का सुन्दर झोंका
फागुन का, अहसास कराता है
हंसाता है, रुलाता है, मुझकों
पतझड़ बनाकर जाता है
इस जर्जर देह पर
इक तहरीर उठाए फिरता हूँ
चलना बस की बात कहाँ
पर, पग बढाए चलता हूँ
बिछड़ गए जो अपने सपने
इक तस्वीर उठाए फिरता हूँ
इस मरुधर संसार में
हरियाली को तरसता हूँ।
मर जाऊँ यह अभिलाषा है
पर मौत नहीं आती मुझको
जो रहने थे वो चले गए
करके शेष मुझे, मुझको
हे। ईश्वर मौत मुझे दे दे
इस रूप की अब न चाहत है
तिल-तिल कर मरने से अच्छा
बडी मौत ही राहत है
इक- इक करके टूट गये
मोतिन के सब हार मेरे
मात्र बचा अब धागा हूँ
शेष नहीं दामन में मेरे।
प्राण त्याज्य की दृढ इच्छा अब मेरी
शेष बची सांसों की डोरी
उठा लो, इस संसार से भगवन
नहीं कद्र, अब शेष है मेरी
काया कब खाक हो प्रभु
अंतिम
यही पूर्ण, अभिलाषा मेरी।
धन्यवाद
Dharamveer Vermaधर्म

Exit mobile version