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“वो अब कहते हैं मत बोलो” (छंद बद्ध)

तबाही मेरे मन की तुम
हंसी में लेके मत डोलो
मेरे गीतों को अपने
प्रेम के भेंट मत बोलो
जो कभी मरते-मिटते थे
मेरे अल्फाजों के दम पर,
कि अब देकर हमें कसमें
वो अब कहते हैं मत बोलो।।

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