कुछ तो जरूर होगा उन प्यारी सी आँखों में,
सपने तो उसके भी होंगे उड़ने के आसमानों में।
सहमी तो वो भी रहती होगी उस अनजानी भीड़ में,
घर से दूर उस बिन पहचानी सी पीर में।
अच्छे कपडे और खाने का शौक उसे भी तो होगा,
पर पैसों की मार ने शौकों को तोडा होगा।
उन अनजाने लोगों में अपनों की याद तो आती होगी,
अपनी बेबसी देख आंखों में नमी तो आती होगी।
स्कूल का बस्ता और किताबो का शौक भी तो होगा उसे,
मन के एक कोने में आशाओं का दीप सताता तो होगा उसे।
डर सी जाती है वो अपने हालातों को यूं देखकर,
जो उम्मीदों को रख देते हैं झंझोड़ कर।
आखिर वो क्या करे उन उम्मीदों का,
दिल में समेटे हुए उन सपनो का।
आखिर वो कहाँ जाये इस निर्दयी दुनिया में,
कौन है उसका इस घनी अँधेरी बगिया में।
शिवम् दांगी