वो फुरसतों के काफिले
वो रोज़ मिलने के सिलसिले
वो शहर कहाँ खो गया
जहाँ पास रहते थे फासले
कुछ तो हुआ अजीब सा
खो गए रास्ते ग़ुम है मंज़िलें
हर निगाह में जूनून सा
हर आँख में है अब वलवले
कौन क़ातिल है वफाओं का
क्यों सोचता है दिलजले
राजेश’अरमान’