मेरे सुंदर चेहरे और मीठी आवाज
पर टिका थे वो रिश्ते
जब आवाज घरघराने लगी
चेहरे पर झुर्रियां पड़ गईं
ढल गई जवानी
शाम-सी जब
दर्पण भी नजर चुराने लगा
तब टूट गये सारे रिश्ते
सब छोंड़ गये
मुझको मरते
तब दिया सहारा
जिन बाँहों ने
सहलाया जिसने हाँथों से
वह मेरा जीवनसाथी था
जो मेरे सुंदर चेहरे पर नहीं
सुंदर हृदय पर मरता था
उस समय समझ आया मुझको
ये जो सम्बंध होते हैं
वो सुंदर
हृदय और अटूट विश्वास पर
चलते हैं…..