हाथ फैला कर श्वेत कुमुदिनी सी,
वो कर रही थी मेरा इंतज़ार।
ना जाने कब से करता था मैं
उससे प्यार ।
वो मेरा रुहानी प्यार..
जिसका कभी न किया मैनें इज़हार
वो समझी तो समझी कैसे ।
यह सोच कर हैरान हूँ
बढ़ चला उसकी ओर,
आखिर मैं एक इंसान हूँ।
वो पावन पूजा के दीपक की लौ सी,
उसको अपलक मैं देख रहा।
मुस्कुरा कर कहती है मुझे फ़रिश्ता,
रुहानी प्यार का है उससे रिश्ता॥
______✍गीता