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वक़्त की स्याही

वक़्त की स्याही ज़िंदगी के कोरे कागज़ पर न जाने क्या लिख जाती है
कभी ये कागज़ किताब बन जाते ,कभी ये महज पन्नें बन बिखर जाती है

राजेश ‘अरमान’

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