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शिक्षा ग्रहण करो, संत ज्ञानेश्वर भीमराव बनो

शिक्षा ग्रहण करो,संत ज्ञानेश्वर भीमराव बनों
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यदि मन में अभिलाषा है किसी विशेष कार्य, वस्तु ,लक्ष्य, पद प्रतिष्ठा के लिए और धरातल पर कोई ठोस कदम नहीं, तब स्वाभाविक है कि आने वाले समय में आपको असफलता का स्वाद चखना पढ़ेगा। अभिलाषा पूर्ण करने के लिए उचित प्रबंधन, समय ,श्रम, विश्वास, जैसे अनेक हथियारों का निवेश व संग्रह करना होगा अन्यथा अंत में निराशा ही हाथ लगेगी । जैसे यदि आपकी इच्छा विद्यार्थी जीवन में उच्च पद की नौकरी सरकारी या प्राइवेट प्राप्त करना है, तो आप का प्रथम कर्तव्य होगा धैर्य ,समझ, गहराई से लगन पूर्वक अध्ययन करना।अच्छे अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण करें, आपके अंक आपको विश्वास और सफलता के लिए ऊर्जा प्रदान करेंगे । इस उम्र में आप को सभी पहलुओं से पहले अपने माता-पिता व गुरु का आज्ञाकारी पुत्र व शिष्य बनकर कार्य करना चाहिए| संस्कार ,शिक्षा , कहीं से भी मिले ग्रहण करो, बड़ों का उपदेश सुनो,अपनी वाणी पर नियंत्रण रखो और सकारात्मक चिंतन में प्रगतिशील रहो ।दया, धर्म परोपकार आदि बातों को सीखना समझना चाहिए| इसके साथ विद्यार्थी जीवन में अंधा प्रेम, अमर्यादित शब्द, द्वेषपूर्ण कार्य-भाव, अर्धमरुपी बीज तन मन में ना बोये।नफरत ,जातिवाद,धर्मवाद,क्षेत्रवाद ,रंग,लिंग, आदि अवगुण जो मानवता के खिलाफ है या इसी के आड़ में नया मंच ,राजनैतिक समाजिक संगठन अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहीं हैं | उनसे दूरी बनाना परम आवश्यक है।
आज समाज में नयी बुराइयां मानव को दानव बनाने में अग्रसर है| इससे भी सावधान सचेत रहना है, प्रेम युद्ध नहीं सिखाता, संगत बुरा मार्ग नहीं दिखाता, ज्ञान मन को कुंठित नहीं करता, शब्द सर को झुकने नहीं देते ।यदि आपने तन-मन,कर्म-वचन, पर नियंत्रण और सकारात्मकता का भाव पाल रहे हो तो अपका भविष्य उत्तम है । यह आपको महान क्रांतिकारी दार्शनिक बनने की ओर अग्रसर करेगा | कम समय में ही आप एक अच्छी ऊंचाई को छू सकते हो । ऐसी बातों का संग्रह करना व किताबों को पढ़ना है, जो दुख-सुख,जीवन-मरण, सत्य-असत्य ,धर्म-अधर्म, स्वर्ग-नर्क, पाप-पून्य, शुभ-अशुभ,आदि बातों का खंडन कर सकें,मानवीय गुणों में वृद्धि व पाखंड अंधविश्वास पर कुठाराघात करते हुए विज्ञान को बढ़ावा दे सकें।
ज्ञान उम्र का मोहताज नहीं है ।प्रतिभा किसी विशेष जाति में निश्चित नहीं है ।जो भी चाहे कम उम्र में शिक्षा के द्वारा उत्तम आदर्श ,पद, प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है व समाज में उपयोगी बन सकता है । विज्ञान सत्य है -धर्म गलत है ,भगवान असत्य है-प्रकृति सत्य है।संसार को नया दर्शन,इतिहास,भूगोल के लिए मार्ग बना सकते हो, संपूर्ण जगत के लिए एक नया जीवन दर्शन खड़ा कर सकते हो। नए पथ, पंथ ,धर्म-समाज का निर्माण व परिभाषा बदल सकते हो और गढ़ सकते हो, धर्म ग्रंथों को कटघरे में खड़ा करके सवाल कर सकते हो, सभी धर्म ग्रंथ का गहन अध्ययन करके एक नए पंथ का निर्माण कर सकते हो। इन सब बातों के लिए प्रथम आवश्यक शर्त है, एकाग्र चित्त, हसमुंख, जिज्ञासु बनकर,अंबेडकर, विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, संत ज्ञानेश्वर ,एकलव्य के भातीं शिक्षा ग्रहण करना, ब्रहमचर्य जीवन व्यतीत करना ,एक मन, एक लक्ष्य, और एक जीवन शैली के साथ,मानवता भरे विचारों का पालन,अध्ययन तथा खोज के लिए प्रयत्नशील रहना आवश्यक है ।शिक्षा मनुष्य की प्रकृति ,प्रवृत्ति तथा संपूर्ण ब्रह्मांड से ,ज्ञान-विज्ञान से, ध्यान-धर्म से, योग-संयोग से ,आदि का शिक्षा दीदार कराने के लिए तत्पर हो जाएगी।शिक्षा आपको अल्प समय में मानव से महामानव बनाने में सहयोग देती है । शिक्षा, शब्द -भेदी बाण के समान विजय दिलाने में कार्य करेगी,
बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर जी ने कहा- शिक्षा वह शेरनी का दुध है जो पियेगा वह दहाड़ेगा, अब फैसला आप सबके हाथ में है ।
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ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’
पता-खजुरी खुर्द कोरांव प्रयागराज उत्तर प्रदेश
संपर्क-6391617530

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