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संगदिल हमराज

ताज है मोहताज, सरताज कहाँ से लाऊँ।
बना रखा है ताज, मुमताज कहाँ से लाऊँ।

साथ निभाने का वादा करते थे कल तक,
बीता हुआ वो कल, आज कहाँ से लाऊँ।

संगदिल कहूँ या फिर दिले-कातिल कहूँ,
किस नाम पुकारूं, अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ।

जो कल तक थे, मुझ बेजुबां की आवाज,
फिर बुला सकूँ, वो आवाज़ कहाँ से लाऊँ।

दिल जोड़ना, फिर तोड़ना, क्या फन तुम्हारा,
करार दे दिल को, वो साज कहाँ से लाऊँ।

छोड़ा बीच राह, यहीं तक था साथ हमारा,
विरान कर गई जहाँ, हमराज कहाँ से लाऊँ।

देवेश साखरे ‘देव’

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