इस जहांँ के हाट में ,
हर चीज की बोली लगती है,
जीव, निर्जीव क्या काल्पनिक,
चीजें भी बिकती हैं,
जो मिल न सके वही ,
चीज लुभावनी लगती है,
पहुँच से हो बाहर तो,
चोर बाजारी चलती है,
हो जिस्म का व्यापार या,
दहेज लोभ में नारी पर अत्याचार,
धन पाने की चाहे में,
करता इन्सान संसार के बाजार में,
सभी हदों को पार,
दहेज प्रथा ने बनाया,
नारी जहांँ में मोल-भाव की चीज,
ढूँढ रही नारी सदियों से,
अपनी अस्तित्व की थाह,
सृष्टि के निर्माण में है,
उसका अमूल्य योगदान,
फिर भी देती आ रही,
अपनी अस्तित्व का प्रमाण,
सदियों से होती आ रही,
उसकी अस्मिता तार-तार,
फिर भी नहीं थकती,
न हारती, होती सशक्त हर बार,
ये संसार नहीं , चोरो का है बाजार ,
लाख बनाए दुनिया दहेज को,
नारी को गिराने का हथियार,
नहीं मिटा ,न गिरा सकेगा,
नारी को कोई भी हथियार ।।