समझों तो यहीँ मोहब्त हैं पंकजोम " प्रेम " 8 years ago ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं ….. इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं … साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें ….. समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं….. पंकजोम ” प्रेम “