Site icon Saavan

समझ जाता है मन यह

आ मेरे मीत आ जा
बात मन की बता जा
उग रहे भाव हैं जो
मेरे मन को दिखा जा।
छिपाना छोड़ दे तू
कोपलें चाहतों की
समझ जाता है मन यह
दिशाएं आहटों की।
तेरे नयनों की भाषा
जान लेते नयन हैं,
क्योंकि लाखों में तू ही
एक इनका चयन है।
जरा सा पास में आ
बैठ जा दो घड़ी तू
चुराकर मन मुआ यह
दूर है क्यों खड़ी तू।

Exit mobile version