मुझको यूँ कुचलने पर तुम्हें वो समन्दर नहीं मिलेगा,
तुम्हारी आँखों को जो चाहोगे वो मंज़र नहीं मिलेगा,
बड़ी बेरहमी से मुझे रास्तों पर छोड़कर जाने वालों,
तुम्हें ढूंढने से भी इस जहां में कोई घर नहीं मिलेगा,
मैं तो कबूल भी ली जाऊगी किसी न किसी दर पर,
के याद रहे तुम्हें तुम्हारा कोई भूलकर नहीं मिलेगा।।
राही अंजाना