हम सरकारी नौकरी
के पीछे पागल हैं,दीवाने हैं
हम भविष्य की चिंता में
देखो दीवाने हैं,मस्ताने हैं ।
लोग समझते यही रहे
हमें आखिर कौन-सा रोग लगा?
हम बेरोजगारी रोग से पीड़ित है
हमें गवर्नमेंट जॉब का नशा चढ़ा।
सब नाहक ही हमसे रूठ गए
सब कहते हैं हम भूल गए
पर सच्चाई कोई क्या जाने!
हम पर क्या बीती रब जाने।
हम रोज ही फार्म भरते हैं
बस पेपर देते रहते हैं
कोई रिजल्ट ना आए हाथ
बस कोर्ट के चक्कर करते हैं।
हम तीन साल के थे तब से
बस ‘अ,आ,इ,ई ‘करते हैं
जब रात में सब सोते हैं
हम टीईटी-सीटेट पढ़ते हैं।
हम सोच-सोच कर सूख गए
सुपर टेट का रिजल्ट कब आएगा?
अब तो भैंस जलेबी खाएगी
और बंदर पान चबाएगा ।
अब प्रज्ञा शुक्ला कहती है
दिवा-स्वप्न देखना बंद करो
सरकारी के पीछे मत भागो
कुछ रोजी-रोटी का प्रबंध करो।