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सहारा तू ही साकी

आबाद जहां करने को, उम्मीद एक ही बाकी है,
अब न कोई ज़िंदगी में, सहारा तू ही साकी है ।

हिज्र-ए-महबूब ने मुझे, क्या से क्या बनाया,
खुद को डूबोया प्याले में, शराब तू ही साथी है ।

आज दस्तकश वो कहते, अजनबी तुम हो कौन,
कल जिन्हें ऐतराफ़ था, मैं चिराग़ तू ही बाती है ।

कुछ भी ना रही आरज़ू जिंदगी में, तेरे सिवाय,
ना किसी शय का तलबगार, शराब तू ही भाती है ।

कोई रहगुज़र नहीं याद, मयकदा ही मेरी मंज़िल,
गुज़रे जो ‘देव’ किसी कूचे से, याद तू ही आती है ।

देवेश साखरे ‘देव’

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