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साथी न कोई मंजिल

साथी न कोई मंजिल
दीया है न कोई महफ़िल
चला मुझे ले के, ऐ दिल, अकेला कहाँ? …
हरदम मिले कोई, ऐसे नसीब नहीं
बेदर्द  है जमीं, दू-ऊ-ऊ-र आस्माँ
चला मुझे ले के, ऐ दिल, अकेला कहाँ? …
गालियाँ हैं अपने देश की, फिर भी हैं जैसे अजनबी
किसको कहे कोई अपना यहाँ?…
पत्थर  के आशना मिले, पत्थर के देवता मिले
शीशे का दिल लिए, जाऊं कहाँ
साथी न कोई मंज़िल
दिया है न कोई महफ़िल
चला मुझे ले के, ऐ दिल, अकेला कहाँ?…
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