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सावन की लगन…

ऐसी लागी लगन
सावन की मुझे,
मैं तो घड़ी-घड़ी कविता
बनाने लगी..
कभी सोते हुए
कभी जगते हुए,
बेखयाली में कुछ
गुनगुनाने लगी..
गजलों में मगन,
नज्म़ों में मगन,
कल्पनाओं में दुनियां
बसाने लगी..
छोंड़ा मैंने उसे
प्यार करती थी जिसे,
सावन को मोहब्बत
जताने लगी..
ओ कवियों! मुझे
उन्माद तो नहीं,
बेवजह आज कल
मुस्कुराने लगी..

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