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सिर्फ एहसास है वफ़ा

सिर्फ एहसास है वफ़ा फिर छूने को जी करता है
यह कौन देता है सदा सुनने को जी करता है

हर शख्स का वज़ूद जुदा फितरत भी जुदा
फिर भी उम्मीद वो खुद के वज़ूद सा करता है

क्या हो तामीर तेरे घर की तेरी आरज़ू से जुदा
हर दरीचा मेरे जेहन का तेरी गली खुलता है

ये अंधेरों की है वफ़ा या उजालों की जफ़ा
ज़ख्म इक मगर दर्द बारहा मिलता है

कितने कुचले हुए लिए बैठा है ‘अरमान’
कोई उजड़ा हुआ गुलशन कभी खिलता है

राजेश ‘अरमान’

 

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