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सुकून के पल कहां

तलाश करने जो चले
सुकून के पल
घूमकर आ गये वहीं
जहां से चले होके बेकल।
मन में भी सुकून नहीं
फिर ढूंढते फिरते कहां
जीवन पे ही छाया ग्रहण
छिनती सांसों की गिनती कहां
हर तरफ़ फैला है कैसा अनल
घूमकर आ गये वहीं
जहां से चले होके बेकल।
उम्मीद की किरण दिखती भी नहीं
जीने की ललक, थमती भी नहीं
परेशान हैं, परेशानी खलती भी नहीं
मृगतृष्णा सी फितरत जाने क्यूं है बनी
मरूद्दान‌ सी आश मन में सफल
घूमकर आ गये वहीं
जहां से चले होके बेकल।

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