Site icon Saavan

सूक्ष्म पल के कण

कुछ तुम सुनाओ
कुछ मैं सुनाऊँ
कुछ तुम कहो
कुछ मैं कहूँ
चुरा कर कुछ पल तन्हाईयों से
खेलें आँख-मिचौनी
कुछ तुम गुनगुनाओ
कुछ मैं गुनगुनाऊँ
गूँज उठेगी शहनाईयाँ
मन के झर्झर खंडहरों में
फिर हटाकर मैला पल्लू
बयाँ करेंगी
अपने उत्थान-पतन की दास्तान
सांझ ढलने को है
दिनकर भी मध्यम हुआ जाता
तिमिर झांकती झरोखे से
श्यामल आँचल की छाया तले
आओ समेट लें
तन्हाईयों के इन सूक्ष्म कणों को
ये धरोहर हैं रहस्य्मय भविष्य के
इतिहास के पन्नों से
निकलकर फिर मिलेंगे
कुछ नूतन तन्हाईयों के संग
खुलेंगे फिर कुछ राज़
हमारे अतीत के

Exit mobile version