Site icon Saavan

स्वछंद पंछी

मुक्त आकाश में उड़ते स्वछंद पंछी
आह स्वाद आ गया कहकर, वाह क्या जिंदगी
कोई मुंडेर, कोई दीवार, या कोई सरहद देश की
सब अपने परों की हद में, वाह कैसी खुशी
बसेरा रख लिया,जब चाहा छोड़ दिया
न कोई मोह, न बंदिश, वाह बेशर्त आजादी
बचपने से बुढ़ापे तक फुदकता जीवन
बिना किश्त बीमा खुशियो का, वाह क्या बेफिक्री
एक डाल पर पंछी, क्या उम्र,क्या रंग, क्या जात
कोई तोड़ने की बिसात नही, वाह सच्ची बराबरी
उड़ना सिखा कर आजाद कर दिए बच्चे
कोई वहीखाता हिसाब नही, वाह निल विरासती
हे प्रभु तू बांध लें खुद से, पर यहाँ से आजाद कर दे
इंसान बनकर क्या किया, बेहतर है पंछी की जिंदगी

प्रवीनशर्मा
मौलिक स्वरचित रचना

Exit mobile version