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स्वप्नों के तराजू पर वजन मेरी जिम्मेदारी का ज्यादा निकला

स्वप्नों के तराजू पर वजन मेरी जिम्मेदारी का ज्यादा निकला,

मेहनत के कागज़ों पर नोटों का रंग थोड़ा ज्यादा निकला,

बहुत बहाया पसीना दो रोटी कमाने की खातिर मैंने,

मगर मेरे वजूद से मेरी कमर पे बोझ ज़रा ज्यादा निकला,

पानी बेशुमार मैंने समन्दर की बाहों में सिमट जाता देखा,

फिर कल्पना की तो साँसों पर मेरी जमाने का सितम ज़्यादा निकला।।

राही (अंजाना)

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