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स्वयम् सृजन

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स्वयम्सृजन 

 

पाने की चाहत मालिक को, कैसे पूरी कर पाएगा,

ख़ुद की अनुभूति कर ना पाया, उसको कैसे पाएगा ?

है नग्न इंसान उसके हिसाब में, छुपा उससे कुछ ना पाएगा,

अंत उतरने ही हैं मुखौटे, तो ख़ुद ही क्यों ना उतार जाएगा ?

 

स्वयम्सृजन का बीज बो , ख़ुद को ख़ुद से दे जन्म,

प्रतिभा अपनी को पहचान, ख़ुद का ख़ुद कर निर्माण,

अपने असली रंग को जान, ख़ुद के मन को पहचान,

जो सच है वह मन से मान, ख़ुद के चित्को जान I

 

नामप्रतिष्ठा का कर हरण, आदर्शोंमुखौटों को कर दफन,

द्वंध को अगन में कर भसम, अपने भय को कर जलन I

जो रंग दुनीया के लगाए चेहरे पे, इन रंगों को कर धुलन,

आईने में दिखती शकल भुला, मन में सच की ज्योत जला I

 

सजग मन को गर तूं कर पाएगा, यही तेरी चेतना जगाएगा,

सजग मन अपना कर, युई ग़लत कुछ ना तूं कर पाएगा,

बोध और होश की आग में, मन का कचरा जल जाएगा,

स्वर्णचित्तप इस आग में, तेरा जीवन पार लगाएगा I

                                                           …… युई

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