हम बंधते ही रहे,
कभी विचारों तो कभी,
दायरों के धागों से,
सिमट कर रही जिंदगी,
उसी चार कोनों के भीतर,
जन्म से आजतक,
बस दीवारों के रंग बदले,
और लोगो के चेहरे,
कभी इस घर की मान बनी,
कभी उस घर की लाज,
फिर भी बांधते ही रहे हमें,
कभी रिश्तों के धागों से,
कभी आंसुओ की डोर से।।।