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हर जुनूँ की कोई वज़ह

हर जुनूँ की कोई वज़ह होती है
हर वज़ह ज़ूनू की सजा होती है

हर शख्स सजा-याफ्ता है यहाँ ,
फर्क सालो का, पर सजा होती है

रिन्दों के लिए मैखाने उजाले होते है
जिनके घर अंधेरों की सजा होती है

दर के तेरे हो या रास्ते का कोई
पत्थरों की भी कोई सजा होती है

कितनी दूर वो अब नज़र नहीं आता
ऐसी भी कोई आँखों की सजा होती है

अब के बरसात , कुछ नम करके गई
भीगी पलकें बारिशों की सजा होती है

कुछ तिरा ज़िक्र भी बेबस है ‘अरमान’
इक तिरी याद भी ,खुद सजा होती है
राजेश’अरमान’

राजेश’अरमान’

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