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हर मौसम में बदल जाती है ,

हर मौसम में बदल जाती है ,
अपने ही अंदर की अपनी तस्वीर
राज़ ये गहरा है जिसे
कोई समझ पाया नहीं

गम की चाह करता हूँ सदा
ताकि पा सकूँ दो पल की ख़ुशी
चाह जो भी की है मैंने
कभी उसे पाया नहीं

न जाने कब थमेगी
जज़्बात की आँधियाँ मेरी
देखेंगे हम भी वो सहर जो ,
कभी देख पाया नहीं

इक बोझ सदा है रहता
क्या कुछ न होने का
या फिर कुछ खोने का ,
कभी समझ पाया नहीं

कौन रोक सका है
लहरों के मचलने को
किनारा आज भी डरा हुआ,
कभी कुछ कह पाया नहीं

सोते हुए भी जागता है
मन के अंदर का मन
कभी सो जाता है मगर
कभी मैंने उसे जगाया नहीं

दस्तक देती रहती है तन्हाइयों
मेरे दरवाज़े पे छुपकर
जब भी खोला दरवाज़ा
कोई नज़र आया नहीं

राजेश’अरमान”

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