Site icon Saavan

हाय! फिर लुट गई…!!

मैं हूँ असहाय
कोई मुझको सम्भाल !
कट रही हूँ मूल से
सब देखें घूर के
गिर रही हूँ धरा पर
कट गये हैं सभी पर
डोर से मैं बँधी थी
सिर उठाये खड़ी थी
एक निगोड़े ने मुझसे
आकर पंजा लड़ाया
मुझमें लिपटा रहा
बाँहों में ले झुलाया
उसके नैनों ने छलकर
मेरे मन को भी हरकर
ढील जैसे मिली
थोड़ा-सा मैं हँसी
हाय! फिर कट गई
हाय! फिर लुट गई….

Exit mobile version