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(हास्य कथा ) भागमभाग

बनवारी नया नया थानेदार बना था। गाँव में हमेशा छाती तान कर चला करता था। गाँव के लोग उन्हें काफी मान सम्मान दिया करते थे। बनवारी के चौबीस की छाती छत्तीस की तब होती थी जब कोई रास्ते में उसे टकरा जाता था। बेचारा वह राही डर के मारे रास्ते के एक तरफ हट जाया करता था। एक दिन शाम के समय बनवारी पुलिस की वर्दी पहन कर गाँव में धाक जमाने चल पड़े। गाँव के पगडंडी पकड़े जा रहे थे। अचानक उनको रास्ते में एक भैंसा मिल गया। अब बनवारी करे तो क्या करे। वह चारो तरफ देखा मगर उसे वहाँ कोई नजर नहीं आया । वह अपनी जान ले कर वहाँ से भागना ही बेहतर समझा । पीछे से भैंसा भी दौड़ने लगा। वह बार बार पीछे मुड़ कर देखते हुए आगे की ओर भाग रहे थे। कुछ दूर दौड़ने के बाद आगे चार जुआरी रास्ते के एक तरफ बैठ कर जुआ खेल रहे थे। अचानक उन लोगों की नजर बनवारी पर टिक गई। वे लोग वहाँ से डर के मारे आगे की ओर भागने लगे। आगे रास्ते के एक तरफ पाँच छह औरतें घास छील रही थी। उन लफंगो को अपनी ओर आते देख कर सभी औरतें डर गई। वे सभी एक छोटी सी झाड़ी में छिप गई। चारो जुआरी अपनी जान हथेली पे रख कर वहाँ से आगे की ओर बढ़ गए। तब जा कर सभी औरतें चैन की सांस लेने ही वाली थीं कि अचानक बनवारी पर नजर पड़ी। सभी औरतें फिर झाड़ी में छिप गई। बनवारी हांफते हुए आगे की ओर दौड़ता हुआ चला गया। सभी औरतें आपस में बतियाने लगी शायद वे चारो जुए खेल रहे होंगे। बनवारी ने देख लिया होगा। इसलिए सभी डर के मारे भाग रहे होंगे। तभी अचानक सभी औरतें भैंसा को अपनी ओर आते देखा। सभी औरतें डर गई। तुरंत ही झाड़ी में छिप गई। भैंसा भी वहाँ से आगे की ओर दौड़ता हुआ चला गया। सभी औरतों को यह माजरा कुछ समझ में नहीं आया। कुछ देर तक सभी औरतें चुप रही। फिर सभी मुंह पर हाथ रख कर जोर जोर से हंसती हुयी अपने घर के तरफ चल पड़ी।

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