हमारी आन, मान, शान “हिंदी”
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भावनाओं का सागर हो दिल में,
तो एक कश्ती उतरती है,
विचारों की बाहों में बाहें गूँथ कर,
लहरों सी सुंदर पंक्तियाँ बुनती है,
ये साहसी काम बस,
हमारी प्यारी भाषा ‘हिंदी’ करती है,
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भाषा के गागर से उछल उछल कर निकलते शब्द,
मान, मर्यादा, अपनत्व, प्रेम के फूल खिलाते हैं,
इन्हीं फूलों की खुशबू से,
हमारे देश में रिश्ते महकते हैं,
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हर एहसास के लिए अलग शब्द है,
उन्माद की हर उमंग दिखाने ढेरों शस्त्र हैं,
शब्द ही शब्द हैं पर्यायवाची,
अनेकों अनेक विलोम हैं,
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संस्कारों के भारी भरकम बोझे,
इस भाषा के छोटे छोटे कटोरों में पलते हैं,
इतिहास के तमाम खट्टे, मीठे, कसैले फल,
इस भाषा रूपी वृक्ष से निकलते हैं,
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हिन्दुत्व के गौरव को सिंचित करती,
पुरातात्विक संस्कृत भाषा से उपजी,
सहस्त्र सहायक हाथों वाली ये बेटी
हमारे देश की आत्मा में बसती है,
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भोली, सहज, सीधी सी ये नायिका,
गंभीर विद्वता का प्रमाण देती है,
मेरे देश की ही तरह,
साम्प्रदायिकता का विरोध करती,
न जाने कितनी और भाषाओं के शब्द,
अपने साथ बहाती चलती है,
“मेरे देश की भाषा दिल बड़ा रखती है”
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कहीं दुश्मनों को ललकारती,
रण वीरों के बोलों से उफनती,
कभी मीठे बोलों से लदी,
ममता की लोरी में लरजती,
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सभ्यता के माथे पर संस्कारों की बिंदी,
मेरे देश की भाषा “हिंदी”,
मेरे देश की भाषा “हिंदी”……..
..मनीषा नेमा..