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हिम से ढ़की हुई हर डाली

सुबह-सुबह सूरज की लाली,
हिम से ढकी हुई हर डाली।
पत्ते-पत्ते बूटे-बूटे पर,
कुदरत ने कारीगरी कर डाली।
बर्फ़ के फ़ाहे गिर रहे राहों पर,
पवन भी सर्द चली है आली।
बादलों ने घेरा है नभ को,
सूरज खेले ऑंख-मिचौली।
घर के अन्दर बैठे हैं सब
राहें हुई हैं खाली-खाली॥
_____✍गीता

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