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हृदय की धड़कने

नयनों की पुतलियां
झपकी अनेक बार
हृदय की धड़कनें
धड़की अनेक बार,
पंजों के मोड़ जाने
कब-कब खुले जुड़े
सच्चे के सामने कब
कर खुले जुड़े।
साँसें स्वयं चली,
आशा कभी बनी
आशा कभी गली,
पाने को प्रेम मन यह
फिरता रहा गली।

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