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हे कवि..

हे कवि,
तुम लिखना मत छोड़ना
कोई कुछ भी कहे कभी कलम मत तोड़ना l
तुम से ही सीख ले रहा,
यह सारा संसार है
अपने गीतों से जग दिखलाना,
तुम्हारे कांधे पर भार है
कवि का कार्य तो लेखन है,
तुम्हारी रचनाएँ समाज का दर्शन हैं
उषाकाल की हो लाली,
यह वृक्षों की हरियाली
नभ में सितारे टिमटिमाते
चन्द्र भी रोशनी बिखराते
गीत तुम्हारे दिखलाते हैं,
झरने और सरिता
या पर्वतों पर बर्फ गिरने की लिख दो एक कविता l
हे कवि कविता से सदा जुड़ा रहे दामन,
प्रभु का तुम्हें यह उपहार है पावन॥
______✍गीता

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