है अभी तूफान गर मेरी सफलता के पथ पर
पर अब नहीं रुक सकता मैं जो हो चुका हूँ अग्रसर
हूँ पथिक ऐसा जो नहीं रुक सकता ऐसे हारकर
अंधेरी रात है तो क्या हुआ सुबह भी होगी मगर
माँ बाप को है गर्व मेरे होने के एहसास पर
मुझसे कहीं ज्यादा भरोसा है उन्हें मेरी जीत पर
कर नहीं सकता हूँ टुकड़े उनकी आशाओं का मैं
अब करना तूफानों से दो-दो हाथ है डटकर
~राम शुक्ला
कटरा बाज़ार, गोंडा उत्तर प्रदेश