होता है सवेरा
भाग रहे मन को वश में कर
ध्यान ज़रा तू ख़ुद पर भी धर
तू आज़ाद है है एक परिंदा
क्या पाया होकर तूने ज़िंदा
भटक रहा है तू भी वैसे
और यहाँ पर भटकें जैसे
धैर्य रख और ध्यान कर
ना खुद पर तू अभिमान कर
इंसान हे तू नेक है
तू ख़ुद ही ख़ुद में एक है
क्या रहा तू अब फिर देख है
तुझ में भी तो विवेक है
अब उठा कदम और बढ़ जा आगे
होता है सवेरा जब तू जागे।।