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ज़िंदगी धुप -छोंव्

ज़िंदगी धुप -छोंव्
तपती रेत धसते पाँव

राही सुप्त
बिखरे ख्वाब मंज़िल लुप्त

टूटे सपने
अहसास हुआ थे ये अपने

जख्म हरे
जो की पीड़ा से भरे

दुःख के घेरे
चारों और घनघोर अँधेरे

मौत आखरी दांव
लम्बे सफर का अंतिम पड़ाव
राजेश ‘अरमान’ 19/10/1991

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