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अँधेरे और रौशनी के बीच का फर्क मिटाना चाहती हूँ

अँधेरे और रौशनी के बीच का फर्क मिटाना चाहती हूँ,

माँ की कोख से निकल बाहर मैं आना चाहती हूँ,

जो समझते है बोझ मैं उनको जगाना चाहती हूँ,

कन्धे से कन्धा मिलाकर अब दिखाना चाहती हूँ,

खड़ी हैं दीवारें जो दरमियाँ दो सरहदों के सहारे,

गिराकर हर रंज मैं रंग अपना लगाना चाहती हूँ,

– राही (अंजाना)

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