तू जर्रों की तरह उड़कर
मेरी सांसों में मिलता है
ये मन योगी हुआ
तन भस्म देखो मलता रहता है
अन्तस में दिये जलते
रोशनी आसमां तक हो
पुष्प जोगी बने फिरते
कहो फिर इश्क कैसे हो !!
तू जर्रों की तरह उड़कर
मेरी सांसों में मिलता है
ये मन योगी हुआ
तन भस्म देखो मलता रहता है
अन्तस में दिये जलते
रोशनी आसमां तक हो
पुष्प जोगी बने फिरते
कहो फिर इश्क कैसे हो !!